मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम – २
हो, होइहै वही जो राम रचि राखा, को करे तरफ़ बढ़ाए साखा
हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी
हो, जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू
हो, जाकी रही भावना जैसी, रघु मूरति देखी तिन तैसी
रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
हो, हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता, कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
राम सिया राम सिया राम जय जय राम